
| وباسمكَ يجري بريدُ العزاءِ |
| وتجري المراثي |
| على كلِ فمْ |
| لأنك في الشمسِ ما لا يُرى |
| لأنك في الوردِ ما لا يُشمْ |
| لأنك كنتَ |
| كأنْ لم تكنْ |
| ونازعَ فيكَ الوجودَ العدمْ |
| أيا |
| حارس الوحي والانتظارِ |
| تأهبْ فميقاتُك الآن تمْ |
| سُتبعثُ |
| من موتكَ المستحيلِ |
| لتصعدَ وحدكَ هذا الألمْ |
| ستصعدُ تصعدُ حتى تغيبَ |
| وتهبطُ حتى |
| كأنكَ لمْ... |