
| النهاراتُ بنتُ عينيكِ |
| لكن |
| مسجدي يرفعُ القصيدةَ ليلا |
| بيننا |
| وحشةُ المسافةِ تعوي |
| جُنّ من زوّجَ الثريا سُهيلا |
| ربما مرةً تمرّدَ ظلي |
| حين أبدى لظلِ ظلكِ |
| ميلا |
| كنتُ وهماً |
| فلا تطيلي انتظاري |
| إنني أبعدُ الخرافاتِ |
| نيلا |
| منذُ لوّنتُ بالمجازِ عيوني |
| لا أرى الخيلَ في الحقيقةِ خيلا |
| بانتباهي إلى البعيدِ |
| مصابٌ |
| وأسمي الغمامةَ الآن |
| سيلا |
| يا التباسي الأخير |
| أُقسمُ أني |
| لستُ قيساً ولا أظنكِ ليلى |