
| مالي ادعيتك لي وأهلك ماثلون؟! |
| ولمَ إليك يُلِّحُ بى شجني |
| يصادرني التوقع والتهيؤ والجنون |
| مارفّ طرفي |
| واعتقدت سوى قدومك أنت وحدك |
| دون كل العالمين |
| مادقّ قلبى فجأة |
| إلاّ وكان توقع السفر الفجائي الجميل إليك |
| والرهق الحنين |
| عجباً تخذتك محوراً |
| وتركت للأشياء حولك |
| أن تدورَ وأن تصيبَ وأن تَضل |
| وكيفما شاءت تكون |
| عجباً حفظتك راتباً |
| ورفعتُ عن كلّ القصائد |
| والمقاطع والرويات العتيقة |
| حظر أن تنسى |
| والغيث الهتون . |